जी हां, आपसे कोई ज़ोर-ज़बर्दस्ती नहीं है, आप मंत्र-मुद्रा विज्ञान के बारे में जानना चाहते हैं, तो पहले इनका प्रयोग करके देख लें और जब आप आश्वस्त हो जाएं, तब इन पर विश्वास करें. हमें पूरा यकीन है आप निराश नहीं होगे.
हमारे वेदों में जो तथ्य हैं, उन्हें आधार बनाकर नासा भी अपने प्रयोग करता है और उन्हें सही पाता है. इसी तरह के कई उदाहरण हमारे आसपास ही हमें मिल जाएंगे, जो बार-बार इस बात को प्रमाणित करते हैं कि किस तरह से धर्म, अध्यात्म और साइंस एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और एक दूसरे के पूरक हैं. हम आज उन्हीं तथ्यों को संकलित करके आपको यह बताएंगे कि क्यों हमें वैदिक काल के प्रमाणों पर विश्वास करना चाहिए.
साइंस कहता है कि जब तक कोई बात प्रमाणित न हो जाए, उसे मत मानो और वेदों की मानें, तो ख़ुद एक्सपेरिमेंट करें और तब विश्वास करें. कुल मिलाकर साइंस और वेद एक ही बात अलग-अलग तरह से कहते हैं कि जिस पर भरोसा न हो, तो आप ख़ुद उसे जानें, एक्सपेरिमेंट करें और फिर भरोसा करें. इसी थ्योरी के आधार पर टिका है मंत्र आर मुद्रा विज्ञान भी.
1. भोपाल गैस त्रासदी से बचाया हवन ने…
सबसे पहले हम आपको उस घटना के विषय में बताएंगे, जिसके बारे में बहुत कुछ छपा, लेकिन फिर भी अधिकतर लोग इससे अंजान ही हैं. भोपाल गैस त्रासदी तो हम सभी को याद है. उस भयावह घटना को आज भी याद करते हुए हर कोई सिहर उठता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि उस घटना में दो परिवार ऐसे भी थे, जिन पर इस ज़हरीले गैस को कोई दुष्प्रभाव नहीं हुआ था और वो पूरी तरह सुरक्षित थे. यह शॉकिंग लगता है न, लेकिन जब आप पूरे तथ्यों को समझेंगे और इसके पीछे छिपे वैज्ञानिक कारणों व आधार को जानेंगे, तो सारा मंज़र साफ़ हो जाएगा.
3 दिसंबर 1984 की वो रात थी, जब भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्टरी से ज़हरीली गैस लीक हुई थी. इसकी चपेट में आकर बहुत से लोगों की जान गई, तो लाखों लोग अस्पताल में भर्ती हुए. यहां तक कि अब तक भी उस घटना के काले निशान उन लोगों की ज़िंदगी में बने हुए हैं, लेकिन इन सबके बीच श्री सोहनलाल कुशवाह और श्री एमल.
एल राठोर का परिवार पूरी तरह सुरक्षित था, जबकि उनका घर इस फैक्टरी से मात्र एक मील की दूरी पर ही स्थित था. इसके पीछे के कारणों का जब पता लगाया गया, तो यह तथ्य सामने आया कि ये परिवार नियमित रूप से हवन करते थे, इस तरह से यह हवन उस ज़हर केलिए एंटीडोट साबित हुआ. यह ख़बर ‘द हिंदू’ में ‘वेदिग वे टु बीट पॉल्यूशन’ की हेडिंग के साथ छपी थी.
हवन में जो सामग्री इस्तेमाल की गई थी, वो थी- ऊपले (गाय का सूखा गोबर), लकड़ी, घी, चावल के दाने आदि… हवन की सामग्री को जब अग्नि में डाला जाता है, तो आसपास का वातावरण शुद्ध हो जाता है. सारे कीटाणुओं का सफ़ाया होकर हवा शुद्ध हो जाती है.
हवन के प्रभाव को जानने के लिए किया गया यह वैज्ञानिक प्रयोग…
कमरे में बैक्टीरियल प्रदूषण पर हवन के प्रभाव को जानने के लिए उसी आकार के दो कमरे चुने गए. दोनों कमरों में हवन अग्नि प्रज्ज्वलित की गई. हवन से 10 मिनट पहले ही कमरे में मौजूद जीवाणु और कीटाणुओं की जांच की गई थी. एक कमरे में सूर्यास्त के समय हवन किया गया. उसके बाद फिर से बैक्टीरियल प्रदूषण की जांच दोनों ही कमरों में की गई और जिस कमरे में हवन हुआ था, वहां इनकी संख्या लगभग 91.4% तक घट चुकी थी. जबकि जिस कमरे में स़िर्फ अग्नि प्रज्ज्वलित की गई थी, वहां कोई फ़र्क़ नहीं नज़र आया.
इसी तरह के और भी दो प्रयोग किए गए, जिनके नतीजों ने भी यही साबित किया. दरसअल, हवन के धुएं में फॉर्मलडिहाइड और इसी तरह के अन्य तत्व भी होते हैं, जो बैक्टीरिया को पनपने से रोकते हैं और उन्हें ख़त्म भी करते हैं.
2. 14 साल की लड़की ने ॐ की शक्ति को वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित किया
कोलकाता के वैज्ञानिक भी दंग रह गए इस 14 वर्षीया लड़की ने वो कमाल कर दिखाया है. 11वीं में पढ़नेवाली अन्वेषा रॉय चौधरी ने राज्य सरकार द्वारा आयोजित साइंस कांग्रेस में टॉप किया था. अन्वेषा ने अपनी इस खोज को प्रमाणित किया कि ॐ की ध्वनि थकान को मिटाने में कारगर है. दरअसल, ॐ के लगातार उच्चारण से ऱक्त में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ता है, कार्बनडायऑक्साइड और लैक्टिक एसिड का स्तर घटता है, जिससे थकान का स्तर भी कम होता है और आप ऊर्जा महसूस करते हैं.
कोलकाता यूनीवर्सिटी के के फिज़ियोलॉजी डिपॉर्टमेंट के हेड देबाशीष बंदोपाध्याय ने एक प्रसिद्ध अख़बार समूह को यह कहा था कि अन्वेषा की खोज और उसका प्रोजेक्ट काफ़ी रचनात्मक, बिना किसी दोष के है और उसका आधार भी बेहद ठोस है.
अपने प्रोजेक्ट के बारे में अन्वेषा ने भी कहा था कि उसने यह पाया कि एक निश्चित फ्रीक्वेंसी में ध्वनि का जब उच्चारण होता है, तो उसका प्रभाव हमारे न्यूरोट्रांस्मीटर्स और डोपामाइन जैसे हार्मोंस पर पड़ता है. यह लैक्टिक एसिड के स्तर में भी कमी लाता है, जिससे व्यक्ति को थकान कम महसूस होती है.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि संगीत और उसके हेल्थ पर प्रभाव पर काफ़ी कुछ लिखा और अध्ययन किया गया है, लेकिन ॐ की ध्वनि की ओर इस तरह से किसी का ध्यान नहीं गया था.
अन्वेषा के अनुसार, इसकी शुरुआत तब हुई, जब वो उत्तराखंड गई थी और उसने देखा कुछ संत पानी के लिए रोज़ाना 68 कि.मी की यात्रा करते हैं, वो भी बिना थके. इस दौरान वे कुछ धुन गाते थे. अन्वेषा के लिए वो धुन याद रखना संभव नहीं था, तो उसने ठीक उसी तरह की धुन की खोज शुरू कर दी. अंत में उसे 430 हर्ट्ज़ फ्रीक्वेंसी की धुन मिली और 17 लोगों पर विभिन्न प्रयोगशालाओं में किए गए 5 अनुसंधानों में उसने पाया कि लगभग 30 मिनट तक उस धुन को सुनने के बाद उनके शरीर में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ा और कार्बनडाइऑक्साइड का स्तर घटा.
3. हृदय रोग से पीड़ित वीरेन ने अपने अनुभव को शेयर किया.
वीरेन के अनुसार- मैं वर्ष 2005 से ही हृदय रोग से पीड़ित था. इलाज होता, थोड़ी राहत मिलती, लेकिन समस्या फिर शुरू हो जाती. डॉक्टर ने मेरा ईसीजी सही नहीं पाया, तो मुझे एडमिट होने की सलाह दी. इसी दौरान मैंने अपने वॉट्सऐप पर किसी दोस्त द्वारा भेजी गई एक वीडियो क्लिप देखी, जिसमें यह बताया गया था कि रिसर्च से साबित हुआ है हृदय रोग से पीड़ित तीर्थयात्री विठ्ठल विठ्ठल जय हरि विठ्ठल बोलते हुए पंढरपुर गए थे. जब इन्होंने अपनी यात्रा शुरू की थी, तो बहुतों को हृदय रोग की काफ़ी समस्या थी और उनमें से कुछ को तो डॉक्टर्स ने यात्रा न करने की सलाह दी थी. लेकिन ये सभी पंढरपुर चलते हुए गए, लगभग 200 किमी की दूरी तय करते हुए. जब ये सभी वापस लौटे, तो सभी काफ़ी स्वस्थ थे. यहां तक कि डॉक्टर्स भी हैरान रह गए थे, क्योंकि उनके लिए यह चमत्कार से कम नहीं था. पुणे के एक रिसर्च इंस्टीट्यूट ने इसके पीछे के कारण को जानने के लिए अनुसंधान शुरू किया. दो वर्ष की रिसर्च के बाद वे इस नतीजे पर पहुंचे कि विठ्ठल बोलने के दौरान ‘ठ’ शब्द से हृदय वायब्रेट होता है. इस तथ्य को साबित करने के लिए अनुसंधानकर्ताओं ने 25 हृदय रोगियों को रोज़ाना 10 मिनट के लिए विठ्ठल का उच्चारण करने को कहा. 10 दिन बाद वे नतीजे देखकर हैरान रह गए. सभी हृदय रोगियों का काफ़ी आराम आ गया था. हाई बीपी और इरैटिक पल्पिटेशन के रोगियों को सबसे अधिक आराम था.
ये वीडियो देखकर मैंने भी विठ्ठल का उच्चारण शुरु किया. जब कुछ समय बाद मेरा ईसीजी किया गया, तो सब कुछ सामान्य था. डॉक्टर हैरान थे और उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं दुबई में कोई ट्रीटमेंट ले रहा था? मैंने उन्हें विठ्ठल के उच्चारण की बात बताई और उन्होंने इस बात को जानने के लिए 24 घंटों तक मेरे के हृदय को निरीक्षण में रखा, फिर अस्पताल से छुट्टी दे दी.
मैं चाहता हूं कि हर किसी को ये तथ्य जानना चाहिए, ताकि वो अपने हृदय को सुरक्षित व स्वस्थ रख सके. अब मैं दुबई में हूं और मेरे डॉक्टर भी काफ़ी ख़ुश हैं कि मैं पूरी तरह स्वस्थ हूं. मैं रोज़ सुबह 10 मिनट विठ्ठल का उच्चारण करता हूं. यदि किसी को भी मुझसे इस विषय पर बात करनी हो, तो कृपया मुझसे इस फोन नंबर पर संपर्क करे- 0504513400 या मुझे ईमेल भी कर सकते हैं- [email protected] ये तीनों सत्य घटनाएं इस बात को प्रमाणित करती हैं कि हमारे वेदों में, मंत्रों में, मुद्राओं में वो ताक़त है, जो आपको हर बीमारी से निजात दिलाकर स्वस्थ जीवन देने में सहायक हैं. तो क्यों न बेहतर व स्वस्थ जीवन के लिए मंत्रों की शक्ति को अपनाया जाए.