यूनाइटेड नेशन्स से भी पहचाना है संस्कृत के वैज्ञानिक आधार को…
संस्कृत के महत्व और उसके वैज्ञानिक आधार को देखते हुए यूनेस्को ने इंटैजिबल कल्चरल हैरिटेज ऑफ ह्यूमैनिटी की लिस्ट में संस्कृत में वैदिक चैंटिंग (जाप) को शामिल करने का निर्णय लिया है. यूनेस्को ने यह माना है कि संस्कृत भाषा में वेदिक चैंटिंग का मनुष्य के मन-मस्तिष्क, शरीर और आत्मा पर गहन प्रभाव होता है.
- जब आप संस्कृत में मंत्रोच्चार करते हैं, तो उसका आपके स्वास्थ्य पर काफ़ी गहरा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि उन अक्षरों के वायब्रेशन यानी कंपन से आपके चक्र जागृत होते हैं और आप ऊर्जावान महसूस करते हैं. आपका स्वास्थ्य बेहतर होता है और आप एक बेहतर ज़िंदगी जीते हैं.
क्या कहना है साइंटिस्ट डीन ब्राउन का संस्कृत पर…?
- साइंटिस्ट प्रोफेसर डीन ब्राउन, जो फिज़िसिस्ट, संस्कृत स्कॉलर, उपनिषदों और योग सूत्रों के अनुवादक भी हैं, उन्होंने संस्कृत भाषा के वैज्ञानिक आधार के विषय में काफ़ी कुछ कहा है. – उनके अध्ययन व रिचर्स से यह बात सामने आई है कि बहुत-सी विदेशी भाषाएं भी संस्कृत से ही जन्मी हैं, चाहे फ्रेंच हो या अंग्रेज़ी, उनके मूल में कहीं न कहीं सस्कृत ही है.
- यही नहीं, बहुत-सी वैदिक धार्मिक मान्यताएं भी पश्चिमी सभ्यताओं में देखी जा सकती हैं.
- ब्राउन का कहना है कि संस्कृत वैदिक काल में महान चिंतकों और संन्यासियों व ऋषि-मुनियों द्वारा इस्तेमाल की जाती थी. संस्कृत में ऐसे बहुत-से शब्द हैं, जो आपकी मानसिक चेतना को दर्शाते हैं. अन्य भाषाओं में जहां भावनाएं होती हैं, संस्कृत में वहीं चेतना होती है.
- हमें जो सबसे महत्वपूर्ण शब्द मिला है वो है ॐ, जो अस्तित्व की आवाज़ है, आंतरिक चेतना है और यह दरअसल ब्रह्मांड की आवाज़ है.
- वहीं पूरी तरह से साइंस हैं, जिनमें प्रमुख रूप से यही विचार सर्वोपरी है कि हर मनुष्य के मूल में जो चेतना है, वह है आत्मा. यह आत्मा ब्रह्मांड से अलग नहीं है. इस तरह से संस्कृत के ज़रिए आप ख़ुद को, अपने ब्रह्मांड को पहचान सकते हैं. स्वयं की और अपनी प्राचीन धरोहर की खोज करने का मुख्य ज़रिया है संस्कृत, जिसे भारतीय ख़ुद नज़रअंदाज़ कर रहे हैं और पश्चिमी सभ्यता वहीं से प्रेरणा ले रही है.
नासा ने भी माना संस्कृत है परफेक्ट साइंटिफिक लैंग्वेज
- आज भी लोगों के मन में यही धारणा है कि संस्कृत का इस्तेमाल मात्र मंत्रोच्चार के लिए ही किया जाता है, यही वजह है कि इससे परे हम सोचते ही नहीं और न ही जानने का प्रयास करते. जबकि प्राचीन भारत में यह बोलचाल की भाषा हुआ करती थी. यही वजह है कि तब लोग अधिक स्वस्थ और मानसिक रूप से अधिक संतुलित रहते थे.
- संस्कृत के प्रभाव को और अधिक समझने व जानने के लिए कई पश्चिमी वैज्ञानिकों ने न स़िर्फ संस्कृत भाषा का, बल्कि वेद व उपनिषदों का भी गहन अध्ययन किया है और उन्होंने ने भी इसे वैज्ञानिक तौर पर सर्वश्रेष्ठ भाषा माना है.
- संस्कृत सबसे सटीक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी सबसे सही भाषा है पूरे विश्व में.
- संस्कृत के जो शब्द हैं, वो उच्चारण के समय शरीर में वायब्रेशन पैदा करते हैं, जिनका सीधा असर हमारे चक्रों पर पड़ता है. इस वायब्रेशन से हम मानसिक रूप से अधिक ऊर्जावान और संतुलित रहते हैं.
- नासा के शोधकर्ताओं के अनुसार- संस्कृत सबसे बेहतरीन भाषा है इस्तेमाल करने के लिए और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे विषम क्षेत्रों के लिए सबसे फिट भाषा है, जहां कंप्यूटर्स को इस तरह से डिज़ाइन किया जा सकता है कि वो अपने लिए ख़ुद सोच सकते हैं और अधिकतर निर्देशों के लिए वो इंसानों पर निर्भर न रहकर ख़ुद काम कर सकें.
- संस्कृत की इसी ख़ूबी को समझते हुए जर्मनी में भी 14 से अधिक यूनीवर्सिटीज़ में संस्कृत पढ़ाई जाती है.
- दुख स़िर्फ इस बात का है कि संस्कृत को जन्म देनेवाली भूमि यानी भारत में ही इसे गंभीरता से नहीं लिया जाता.